“वो दौर जब सिक्कों में सोना भी था… और इज़्जत भी।”
“वो दौर जब सिक्कों में सोना भी था… और इज़्जत भी।” ✨ ये सिर्फ सिक्के नहीं, बल्कि भारत की मुद्रा-परंपरा के सुनहरे गवाह हैं। आना, पाई, पैसा, धा पैसा, अरणपी, पटरा — हर शब्द एक अलग युग की पहचान है, जब लेन-देन भरोसे और मूल्य पर चलता था, न कि नोटों पर। 💰 इन सिक्कों की खासियत: कुछ शुद्ध चांदी और सोने से बने होते थे — जो उनकी वास्तविक कीमत दर्शाते थे। अलग-अलग आकार — गोल, चौकोर और फूल जैसी डिजाइनें। इन पर हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों में अंक उकेरे जाते थे। कई सिक्के आना-पाई प्रणाली के थे, जैसे: 1 रुपया = 16 आना 1 आना = 4 पैसे 1 पैसा = 3 पाई 📜 इतिहास की झलक: ये सिक्के ब्रिटिश काल और स्वतंत्रता से पहले के भारत में इस्तेमाल किए जाते थे। उस समय “½ आना”, “¼ पैसा” या “1 पाई” भी बहुत कुछ खरीद सकता था — एक मिठाई, एक दीया या एक अख़बार तक! 🌟 आज के लिए संदेश: इन सिक्कों को देखकर एहसास होता है कि > “कभी मूल्य धातु में नहीं, मेहनत में होता था।” आज ये सिक्के हमारे लिए म्यूज़ियम की शोभा हैं, लेकिन हर सिक्के की चमक में छिपी है — भारत की मेहनत, संस्कृति और आत्मनिर्भरता की कहानी। 🇮🇳