मृत्युभोज कुरीति नहीं है. समाज और रिश्तों को सँगठित करने के अवसर की पवित्र परम्परा है.

 मृत्युभोज कुरीति नहीं है..? समाज और रिश्तों को सँगठित करने के अवसर की पवित्र परम्परा है..! 

निमाड़ प्रहरी -- धीरज नवानी संपादक निमाड़ प्रहरी न्यूज़ नेटवर्क

मृत्युभोज कुरीति नहीं है. समाज और रिश्तों को सँगठित करने के अवसर की पवित्र परम्परा है. हमारे पूर्वज हमसे ज्यादा ज्ञानी थे. आज मृत्युभोज का विरोध है, कल विवाह भोज का भी विरोध होगा,


होली मत खेलो पानी व्यर्थ बहेगा, पटाखे मत जलाओ प्रदूषण फैलेगा, हर उस सनातन परंपरा का विरोध होगा जिससे रिश्ते और समाज मजबूत होता है. इसका विरोध करने वाले ज्ञानियों हमारे बाप-दादाओ ने रिश्तों को जिंदा रखने के लिए ये परम्पराएं बनाई हैं. ये सब बंद हो गए तो रिश्तेदारों, सगे संबंधियों, शुभचिंतकों को एक जगह एकत्रित कर मेल-जोल का दूसरा माध्यम क्या है? पहले जो दुःख में शामिल होते थे दूर-दूर से बैलगाड़ी जैसे साधनों से आते थे तब कोई होटल आदि खाने-पीने के साधन नहीं थे, तब भोजन आदि व्यवस्था उनके लिए कौन करेगा? आज भी सगे रिश्तेदार क्या दूसरों के यहाँ भोजन करेंगे? दुख की घड़ी में भी रिश्तों को कैसे प्रगाढ़ किया जाये ये हमारे पूर्वज अच्छे से जानते थे. हमारे बाप-दादा बहुत समझदार थे. वो ऐसे आयोजन रिश्तों को सहेजने और जिंदा रखने के किए करते थे. हाँ ये सही है की कुछ लोगों ने मृत्युभोज को हेकड़ी और शान-शौकत दिखाने का माध्यम बना लिया, आप पूड़ी सब्जी ही खिलाओ. कौन कहता है की 56 भोग परोसो. कौन कहता है कि 4000-5000 लोगों को ही भोजन कराओ और दम्भ दिखाओ, परम्परा तो केवल 16 ब्राह्मणों की थी. मैं खुद दिखावे का विरोधी हूँ लेकिन अपनी उन परंपराओं का कट्टर समर्थक हूँ, जिनसे आपसी प्रेम, मेल-जोल और भाईचारा बढ़ता हो. कुछ कुतर्कों की वजह से हमारे बाप-दादाओं ने जो रिश्ते सहजने की परंपरा दी उसे मत छोड़ो, यही वो परम्पराएँ हैं जो दूर-दूर के रिश्ते-नाते को एक जगह लाकर फिर से समय-समय पर जान डालते हैं. सुधारना हो तो लोगों को सुधारो जो आयोजन रिश्तों की बजाय हेकड़ी दिखाने के लिए करते हैं. किसी परंपरा की कुछ विधियां यदि समय सम्मत नहीं हैं तो उसका सुधार किया जाये ना की उस परंपरा को ही बंद कर दिया जाये. हमारे बाप-दादा जो परम्पराएं देकर गए हैं रिश्ते सहेजने के लिए दे गये हैं. उसको बन्द करने का ज्ञान मत बाँटिये, वरना तरस जाओगे मेल-जोल को, बंद बिल्कुल मत करो, समय-समय पर शुभचिंतकों ओर रिश्तेदारों को एक जगह एकत्रित होने की परम्परा जारी रखो. ये संजीवनी है रिश्ते नातों को जिन्दा करने की

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