क्या आप लोगो को पता है कि ये कागभुषंडी कौन थे?

 कागभुषंडी

क्या आप लोगो को पता है कि ये कागभुषंडी कौन थे? 

निमाड़ प्रहरी 9977766399

कौवे के रूप मे दिखने वाले कागभुषंडी  प्रभु श्रीराम के बहुत बड़े भक्त थे और इन्हें ये वरदान प्राप्त था कि वो समय के बाहर जा सकते थे यानि कि पूर्व में क्या घटित हुआ और भविष्य में क्या घटित होगा वो सब देख सकते थे,


वो समय के बनने बिगड़ने की साइकल को देख सकते थे इसलिए उन्होंने महाभारत 11 बार और रामायण 16 बार देखी थी, वो भी वाल्मीकिजी द्वारा रामायण और वेदव्यासजी द्वारा महाभारत लिखे जाने से पहले क्योंकि ये अपने पूर्व जन्म में कौआ थे और सबसे पहले राम कथा भगवान शंकर ने माता पार्वतीजी को सुनाई थी तो इन्होंने भी सुन लिया था और मरने के बाद दूसरा जन्म इनका अयोध्यापुरी में हुआ था. ये परम शिव भक्त थे लेकिन अभिमान वश अन्य देवताओं का उपहास उड़ाते थे इसी बात से क्षुब्ध होकर लोमष ऋषि ने इन्हें श्राप दे दिया था जिससे ये फिर कौआ बन गये थे और इसके बाद इन्होंने पूरा जीवन कौवे के रूप मे ही जिया. जब रावण के पुत्र मेघनाथ ने श्रीराम से युद्ध करते हुए भगवान श्रीराम को नागपाश से बांध दिया था तब देवर्षि नारद के कहने पर गिद्धराज गरूड़ ने नागपाश के समस्त नागों को खाकर भगवान श्रीराम को नागपाश के बंधन से मुक्त कर दिया था. भगवान श्रीराम के इस तरह नागपाश में बंध जाने पर श्रीराम के भगवान होने पर गरूड़ को संदेह हो गया. गरूड़ का संदेह दूर करने के लिए देवर्षि नारद उन्हें ब्रह्माजी के पास भेज देते हैं, ब्रह्माजी उनको शंकरजी के पास भेज देते हैं, भगवान शंकरजी ने भी गरूड़ को उनका संदेह मिटाने के लिए कागभुषंडीजी के पास भेज दिया. अंत में कागभुषंडीजी ने भगवान श्रीराम के चरित्र की पवित्र कथा सुनाकर गरूड़ के संदेह को दूर किया और इसीलिए हम हिंदू लोग श्राद्ध पक्ष मे कौवे के रूप में कागभुषंडीजी को भोजन कराते है ताकि वो भोजन हमारे पूर्व के पितरों तक पहुंच सके. आज विडंबना ये है कि बिना पढ़े, जाने, समझे कुछ लोग मजाक उड़ाते हैं इन चीजों का जबकि हिंदू धर्म मे बिना मतलब, बिना कारण के कुछ भी नहीं है.

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