शख्सियत - श्री मनोज राय जिनके आत्मबल से नियंत्रित है शहर की शांति व्यवस्था

 शख्सियत - श्री मनोज राय 

जिनके आत्मबल से नियंत्रित है शहर की शांति व्यवस्था 


- जय नागड़ा 


शहर में शांति व्यवस्था बहाल करने में बड़ी तादाद में पुलिस बल की ज्यादा एहमियत है या पुलिस के आत्मबल की ? मध्यप्रदेश के इस अतिसंवेदनशील शहर में सबसे बड़ी चुनौती ही यहाँ के सांप्रदायिक सौहाद्र को बरक़रार रखना ही है , सामान्यतः निमाड़ के इस अंचल की तासीर आपराधिक नहीं है ,जिस तरह के अपराध देश के अन्य प्रदेशो में या प्रदेश के ही अन्य अंचलों में दिखते है वैसा यहाँ अमूमन कम ही होता है। फिर भी यहाँ पुलिसिंग  इतनी आसान नहीं है जितनी सतही तौर पर दिखती है। हालाँकि यह उनके लिए आसान हो जाती है जिन्होंने इस शहर की तासीर समझ ली , यहाँ के लोगों को समझ लिया और उनका विश्वास भी हासिल कर लिया हो। 

पुलिस अधीक्षक श्री मनोज राय न केवल खण्डवा की तासीर समझते है बल्कि यहाँ की रग - रग से वाकिफ़ है। वे मैदानी तौर पर तो हमेशा फ्रंट फुट पर आकर मोर्चा सम्हालते ही है वहीँ बाकि समय वे यहाँ लोगों को समझते है ,उनकी फितरत जानते है। वे सभी को सम्मान और स्नेह भी देते है जिससे शहर के हर चौथे व्यक्ति को उनसे नज़दीकी का एहसास होता है , महत्वपूर्ण बात यह है कि इन आत्मीय रिश्तों के बावज़ूद कहीं भी गड़बड़ पाए जाने पर वे ढिलाई भी नहीं बरतते। यह सुखद संयोग ही है कि खण्डवा में उन्हें तीन बार कार्य करने का अवसर मिला ,पहले सीएसपी के तौर पर फिर एडिशनल एसपी के बतौर और अब पुलिस अधीक्षक के रूप में वे अपनी दक्षता साबित कर चुके है। 


दरअसल पुलिस कप्तान के लिए अपराधो पर नियंत्रण का मामला हो या शांति व्यवस्था का दोनों में पुख्ता सूचना - तंत्र बहुत महत्वपूर्ण होता है। वैसे पुलिस का अपना सूचना तंत्र डीएसबी के रूप में होता ही है लेकिन पुलिस अधिकारियो के शहर में ही इतने रिश्ते प्रगाढ़ हो तो डीएसबी से ज्यादा त्वरित सुचना उनके पास होती है। यदि समय पर या उससे पूर्व सूचना मिल जाये तो फिर नियंत्रण करना आसान हो जाता है।


पत्रकार के रूप में मैंने सांप्रदायिक तनावों के कई मौकों पर देखा है कि जितना यह बाह्य पुलिस बल से नियंत्रित नहीं होता उससे कहीं ज़्यादा पुलिस कप्तान की निगाहों से। यदि किसी उद्दंड से उद्दंड व्यक्ति को यह एहसास हो जाये कि साहब उसे पहचानते है तो सार्वजानिक तौर पर उसका व्यव्हार बदल जाता है ,और बस यहीं से हालात बिगड़ने से बच जाते है। खण्डवा में जब भी कलेक्टर - एसपी ने स्थानीय लोगो से मेल -मुलाकातें रखी है ,रिश्ते बनाये है उन्हें कार्य करना आसान हुआ  है और जो ऑफिस में बैठकर लोगो से दूरियां बनाकर रखे थे वे प्रशासनिक तौर पर भी  असफ़ल रहे है। 


ज़ाहिर है खण्डवा में सोशल पुलिसिंग मजबूत हो तो एन्टी-सोशल एलिमेंट्स के लिए ज़्यादा गुंजाइश नहीं रह जाती। मनोज राय जी जैसे पुलिस कप्तान के हाथों में आप खण्डवा को सुरक्षित महसूस कर सकते है। आज उनके जन्मदिवस पर आत्मीय शुभकामनाएं ... वे इसी तरह अपनी कार्यशैली से आम नागरिकों में सुरक्षा का भाव बनायें रखें और अपराधियों में असुरक्षा का ...

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