54 साल के राहुल शर्मा पेशे से इंजीनियर हैं।विगत 3 वर्ष से विधुर का जीवन

 54 साल के राहुल शर्मा पेशे से इंजीनियर हैं।विगत 3 वर्ष से विधुर का जीवन

गुजार रहे हैं।दिल के दौरे में पत्नी चल बसीं।

एक बेटी है इकलौती संतान जो शादीशुदा है और एक बेटे की मां...स्नेहा बीच बीच में आती रहती है पिता के अकेलेपन को दूर करने के लिए...राहुल शर्मा आकर्षक व्यक्तित्व के धनी हैं और कहीं से भी 40...45 से ज्यादा नहीं लगते...


ऊपर के फ्लोर में सुधा आंटी किराएदार हैं।अपनी मां के साथ रहती हैं पास के स्कूल में वाइस प्रिंसपल हैं...

स्नेहा"पापा!आपको गुमसुम सा अकेला देखकर हमें अच्छा नहीं लगता...अगर कोई सुलझे दिमाग की लाइफ पार्टनर मिल जाए तो बहुत अच्छा होगा हम सबके लिए...सारा दिमाग आपमें ही लगा रहता है...मां के न होने से हम सबके लिए तो आप हैं लेकिन आप के लिए?सच कहें तो कोई भी नहीं!!"

स्नेहा की बात सुनकर शर्माजी बोले"काफी समझदार हो गई है हमारी बेटी"तभी स्कूल जाते समय सुधा जी ने कहा"नमस्ते सर!"और हाथ में एक लिफाफा थमा दिया जिसमें किराया था हमेशा की तरह...हल्की हंसी के साथ शर्माजी ने भी सिर झुका दिया।सुधाजी की मां स्वभाव से बहुत ही बातूनी(टाकेटिव) हैं हमेशा अपने धुन में मगन...बोलना शुरू करती हैं तो जब तक बात पूरी न कर लें तब तक सांस नहीं लेतीं वो भी अकेले कोई सुनने वाला हो या न हो उनकी बला से।

"हे भगवान!मेरी बेटी बेटे से बढ़कर मेरी देखभाल करती है...अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए 40 पार हो गई... मैं आज हूं कल नहीं...कैसे कटेगी जिंदगी?अब राम ही जाने।" सुधाजी की मां बड़बड़ाई...

स्नेहा बच्चे की देखभाल में व्यस्त रहती।रविवार का इंतजार करती।

बच्चे को पापा को सुपुर्द करके घर के काम में लग जाती।नाना की गोदी में नन्हा बालक बेहद खुश।इधर बूढ़ी मां का बोलना शुरू "अगर सुधा भी शादी की होती तो मेरे भी बड़े बड़े नाती नातिन होते! लेकिन किस्मत कौन बदले?कलेजे में हूक उठती है क्या करें?"

सुधा बोली"मां थोड़ा कम बोला करो...और लोग भी हैं घर में सुनेंगे तो क्या सोचेंगे?"

"कोई कुछ नहीं कहेगा...सब अपने में व्यस्त हैं हमें ही सोचना होगा...किसी काम का कोई वक्त नहीं होता जब हो जाए वही सही वक्त है।" मां की दलीलों से चुप्पी छा जाती...बातें तो बिल्कुल सच ही कहीं।

और राहुल शर्मा आजकल के लड़कों से ज्यादा यंग और स्मार्ट दिखते...बेटी स्नेहा शादी डॉटकॉम से पिता के अनुकूल कैंडिडेट तलाशती..."पापा!आपको मेरे प्रयास को सफल बनाना है।मेरी खातिर आपको करनी ही पड़ेगी शादी!तभी हमारा परिवार पूरा होगा।"ये सुनकर शर्मा जी गंभीर हो जाते...फिर कहते"देखो बेटा!भाग्य में होता तो तुम्हारी मां ऐसे जिंदगी से क्यों जाती?..नहीं है किस्मत में जैसे चल रहा है चलने दो..."

"नहीं!नहीं!!हमारी खुशी के लिए मन की शांति के लिए आपको सोचना ही पड़ेगा..."स्नेहा ने कहा।

शाम को प्रायः स्नेहा शर्मा जी के साथ पार्क, रेस्टोरेंट या मंदिर में लड़की देखने जाती जिसका जिक्र एक दिन सुधा जी के सामने मुंह से निकल गया।स्नेहा ने साफ महसूस किया कि उनका चेहरा सफेद पड़ गया।आखिर वह पूछ ही बैठी"क्या हुआ आंटी?नहीं होनी चाहिए दूसरी शादी?अकेले ही रहने दें उन्हें बिना किसी जीवन साथी के?"

सकपकाई हुई वो बोलीं"तुम बिल्कुल सही सोच रही हो...पता नहीं कितना लंबा जीवन है?अकेलेपन का दंश उसे और भी जटिल बना देता है...हमें अपनी नज़र और नजरिया तो बदलना ही पड़ेगा..."इसी बीच ये वार्तालाभ सुधा जी की मां के कानों से जा टकराया और बोल पड़ीं..."नारी मुई सुख संपति नासी... मूड़ मुड़ाए भए सन्यासी।"सब चुप!!ये क्या बोल गई मां?...सुधा ने कहा।

मां आगे बोलीं"देखो सुधा जैसे तुमने हमारी सारी बात मानी है वैसे ही शादी भी कर लो...शर्मा जी बहुत भले मानुष हैं।मैं बात करूंगी...अकेला जीवन दूभर हो जाता है जीना।गलत थोड़े ही लिखा है रामायण में"मन बिनु देह नदी बिनु बारी...वैसे ही नाथ पुरुष बिनु नारी।"

स्नेहा ने अपने पिता को अंततः काउंसिल कर ही डाला और इस तरह शर्मा जी मान गए सुधा जी से शादी के लिए,..

शाम को दोनों आमने सामने थे।आपस में अपनी अपनी शिक्षा दीक्षा,नौकरी और हॉबीज के बारे में बात की।एक दूसरे से बात करते हुए नजर मिलते ही शून्य में देखने लगते...उम्र कोई भी हो, परिस्थितियां कैसी भी हों।संकोच और झिझक स्वाभाविक है।

पिछले हफ्ते बहुत ही साधारण ढंग से सुधा की राहुल शर्मा से मंदिर में शादी हो गई।

शर्मा जी स्नेहा की मां (अंबा)को याद करके बंद कमरे में बहुत रोए लेकिन मौजूदा खुशियों को बेवजह खर्च नहीं होने दिया।

 स्नेहा को अपने गले लगा कर बोले"बेटी!!तुम जैसी कोई नहीं..."तभी सुधा जी बोल पड़ीं "सचमुच स्नेहा आप पर गई है सर!क्योंकि मैडम को तो मैंने देखा नहीं..."एक अरसे बाद इतना खुशनुमा था घर का माहौल...


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