दिवाली से एक हफ़्ते पहले, लोग तरह-तरह के उपहार लेकर आना शुरू कर देते थे।

 रिटायरमेंट के बाद IAS को महसूस हुआ कि वो गधा था..एक सेवानिवृत्त IAS सचिव रैंक के अधिकारी का दिवाली लेख सोशल मीडिया में पढ़ने को मिला जिसमें लिखा था कि रिटायरमेंट के बाद यह मेरी पहली दिवाली थी।

 दिवाली से एक हफ़्ते पहले, लोग तरह-तरह के उपहार लेकर आना शुरू कर देते थे।

 उपहार इतने ज़्यादा होते थे कि जिस कमरे में हम सारा सामान रखते थे, वह किसी उपहार की दुकान जैसा लगता था। 

सूखे मेवे इतने ज़्यादा होते थे कि अपने रिश्तेदारों और दोस्तों में बाँटने के बाद भी बहुत सारे बच जाते थे लेकिन इस बार दोपहर के 2 बज चुके थे कोई भी हमें दिवाली की शुभकामना देने नहीं आया था।

 मैं अचानक भाग्य के इस उलटफेर से बहुत ही उदास महसूस कर रहा था। अपनी इस सोच से बचते हुये मैंने एक अख़बार का आध्यात्मिकता वाला कॉलम पढ़ना शुरू कर दिया।

सौभाग्य से, मुझे एक दिलचस्प कहानी मिली। 

यह एक गधे के बारे में थी। 

जो पूजा समारोह के लिए देवी-देवताओं की मूर्तियों को अपनी पीठ पर लाद कर ले जा रहा था।

 रास्ते में जब वह गांवों से गुजरता तो लोग मूर्तियों के आगे सिर झुकाते। हर गांव में पूजा-अर्चना के लिए भीड़ जुटती।

 गधे को लगने लगा कि गांव वाले उसे प्रणाम कर रहे हैं और वह इस सम्मान और गर्व से रोमांचित हो गया।

मूर्तियों को पूजा स्थल पर छोड़ने के बाद गधे के मालिक ने उस पर सब्जियां लाद दी और वे वापसी की यात्रा पर निकल पड़े। 

इस बार गधे पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया।

 वह अल्पज्ञानी जानवर इतना निराश हुआ कि उसने गांव वालों का ध्यान खींचने के लिए बार-बार रेंकना शुरू कर दिया। 

शोर से वे लोग चिढ़ गए और उन्होंने उस बेचारे प्राणी को पीटना शुरू कर दिया, जिसे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि उसने ऐसा क्या किया कि उसे इतना क्रूर व्यवहार झेलना पड़ा है। 

*अचानक मुझे बोध हुआ कि वास्तव में, मैं भी इस गधे जैसा ही था।* 

सम्मान और आदर के वे सारे उपहार मेरे लिए नहीं थे बल्कि मेरे ऊपर लदी उन मूर्तियों को थे। 

अब जब मुझे इस सच्चाई का बोध हुआ तो मैं मेहमानों का इंतजार करने के बजाए मैंने दिवाली मनाने में अपनी पत्नी के साथ शामिल होना चाहा, लेकिन वो भी मुझे साथ लेने के मूड में नहीं थी। 

उसने तीखा जवाब दिया: 'जब मैं इतने सालों से कहती रही कि तुम गधे के अलावा कुछ नहीं हो, तो तुमने कभी नहीं माना।

 पर आज एक अखबार में छपी खबर ने सच्चाई उजागर कर दी तो तुमने उसे तुरंत स्वीकार कर लिया।


इसलिए पद पर और समय रहते, अपनी पद-प्रतिष्ठा के साथ–साथ समाज के साथ मिलना जुलना  बोलना और सहयोग करना सीख जायें वर्ना गधे जैसे हालात होंगे ।


सारांश : 

*जो व्यक्ति अपनी नौकरी के दौरान, अपने पद को देख, जरूरत से ज्यादा फड़फड़ाने की कोशिश में रहता है और मौका-बेमौका लोगों को धौंस दिखाता होता है परेशान करता है , उसका सेवानिवृत्ति उपरांत ज्यादातर यही हाल होता है आत्मग्लानि के भाव में जीता है ।* 


आगे उसका जिन्दगी में जब भी किसी सताये हुआ भुक्तभोगी व्यक्ति से वास्ता पड़ता है तो वे भी कभी मौका नहीं चूकते। 

वे व्यक्ति भी उसकी और हिकारत से देखते है खूब धुलाई करते हैं।

 *इन्सान का सरल स्वभाव ही इन्सानी जिन्दगी को आत्मसंतुष्ट  सरल और सफल बनाता है !*

  *यही जीवन का असली मूल मंत्र है। यह लेख वास्तविक है या काल्पनिक लेकिन मेरे तजुर्बे के अनुसार बिल्कुल सत्य है इसलिए कार्य और व्यवहार ऐसा करो कि लोग याद रखें। 


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